गहराती शाम की तंद्रा टूटती
किलकारी लेती अबाबील लगाती गोता छत की मुंडेर में,
छापा जाता है पैसे को मशीनों से
कागज पर लिखा मूल्य तय करता है
सड़क पर अस्मिता
तय करता है आवश्यकता,
महत्व केवल मूल्य के विचार भर से ही
और सच्चाई जैसे कोई स्मृति!
रेत और पानी में छुपी है समुंदर की सीत्कार
खुली आँखों से देखता यह सपना
प्यास परछाईँ की तरह साथ बैठी है
दीवार पर चस्पा जंगल उधड़ जाएगा
छूट जाएगी गोंद नकली वालपेपर की,
कभी हुआ करती थी उस दीवार में
खिड़की की तस्वीर
24.6.09 ©
Thursday, September 10, 2009
The Translator : Nothing is Translated in Love and War
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...

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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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