जमे हुए पाले में
गलते पतझर को फिर चस्पा दूँगा पेड़ों पर
हवा की सर्द सीत्कार कम हो जाएगी,
जैसे अपने को आश्वस्त करता
पास ही है वसंत
इस प्रतीक्षा में
पिछले कई दिनों से कुछ जमा होता रहा
ले चुका कोई आकार
कोई कारण
कोई प्रश्न
मेरे कंधे पर
मेरे हाथों में
जेब में
कहीं मेरे भीतर
कुछ जिसे छू सकता हूँ
यह वजन अब हर उसांस में धेकलता मुझे नीचे
किसी समतल धरातल की ओर,
4.2.06 © मोहन राणा
Saturday, February 04, 2006
The Translator : Nothing is Translated in Love and War
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...

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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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