Monday, June 20, 2005

हिन्दी

'बिग ब्रदर' को भी हिन्दी आती है पर मशीनी हिन्दी
उसे आती है हिन्दी पर

वो हृदयहीन है !
मुझे मालूम है
वह रक्तहीन है
हमारे ही झूठों से जीवित है
हमारी ही धड़कनों में छुपा
हमारे ही कानों से सुनता
हमारी ही आँखों से देखता
हमारे ही स्पर्श से छूता
उसे हिन्दी आती है
ना उसमें कोई व्याकरण की
ना मात्रा की गलती
जरा भी चूक नहीं
जरा भी हिचकिचाहट नहीं


20.6.05 © मोहन राणा

Tuesday, June 14, 2005

पत्थर बाबा

पत्थर बाबा

यह कहानी कब कहाँ और किसने शुरू की यह अपने आप में इस कहानी की तरह ही एक पहेली है,
पत्थर बाबा तुंगनाथ की बर्फीली बादलों से ढंकी चोटी के पास रहते थे, उस उँचाई पर पहुँचना आसान नहीं था ,
संकरी पथरीली पगडंडी पर बरसों से कोई जाता नहीं दिखता . सीधी चढ़ाई फिर एक छोटी सी चौरस जमीन - वहीं पर वे रहते थे,
वे दिखने में कैसे थे, कौन थे किसी को नहीं मालूम!

न वे कभी खुद उतर कर आते. वहाँ कोई रहता है यह सभी मानते थे क्योंकि हर सुबह नियमित घंटी कुछ देर तक बजने की आवाज सुनाई देती थी,

कभी कभी कोई बर्फीली ढलान पर चलता भी दिखाई देता था पर दूरी के कारण उसकी पहचान मुश्किल थी क्योंकि उँची ढलानों पर पहाड़ी बकरियाँ भी रहती थीं.

उनका नाम पत्थर बाबा यूँ पड़ा कि सीधी चढ़ाई के बाद जो भी उनकी झोपड़ी के पास पहुँचता उन्हें पत्थर मार कर बाबा भगा देते.


कई लोग पहाड़ की चढ़ाई और पत्थरों की वर्षा के डर से उधर जाते ही नहीं . बादलों और कोहरे के कारण लोग उस पहाड़ पर रास्ता भी भटक जाते ये भटके हुए लोग बाद में किसी तरह से लौट आते या लोग जाकर उन्हें तलाश लेते पर कुछ कभी नहीं मिल पाते- कभी उस ओर आवाजें सुनाई देतीं तो लोग कहते ये आवाजें मदद की पुकार हैं भटके हुए लापता लोगों की हैं .
पर फिर भी जो कुछ जिज्ञासु पत्थर बाबा के दर्शन करने की कोशिश में जाते भी वे कुछ थकान और डर से बीच रास्ते से लौट आते , कुछ साहसी जिद्दी किस्म के लोग पहुँचते भी उनकी झोंपड़ी के पास तो एक दो पत्थर खाकर लौट आते, दिलचस्प बात यह थी कि पहाड़ से उतरते ही उन्हें कुछ याद नहीं रहता कि वहाँ उन्होंने क्या देखा बस वे दिखाते पत्थरों से लगी चोट - कुछ समय बाद उनकी चोट के निशान भी अपने आप गायब हो जाते

पर इस तरह पत्थर बाबा की कहानी की पुष्टि होती रहती. वे डर और जिज्ञासा का कारण थे. जैसे सच जो भयभीत भी करता है गुस्सा भी दिलाता है पर उत्तर भी देता है.

पर कभी कभी सालों में कोई एक लौट कर नहीं आता वहाँ से, उस पर पत्थर भी गिरते पर उसे पत्थर लगते ही नहीं ... कुछ लोगों का मानना है यह ना लौटने वाले ही फिर पत्थर बाबा बन जाते हैं.






मोहन राणा , 14 जून 2005

Living in Language

Last month I had an opportunity  to attend the launch of "Living in Language", Edited by Erica Hesketh. The Poetry Translation Cen...