Monday, March 29, 2010

एक समय

कुछ दिनों में आएगा एक मौसम
इस अक्षांस में
कुछ दिनों में आएगा एक समय,
जिसे याद रखने के लिए भूलना पड़ेगा सबकुछ
क्षणभंगुर भविष्य को जीते
मैंने अतीत को नहीं देखा है अब तक



©
29.3.2009

Thursday, March 25, 2010

पानी का चेहरा


चिमनी में करती रही बातें
हवा कल सारी रात
जंगलों की कहानियाँ
पहाड़ों की यातना
समुंदरों का सीत्कार
सो रही और कहीं जागती दुनिया के दुस्वप्न
उसके अल्पविरामों के बीच
झरती बरसों पहले बुझ चुके अंगारों की राख,
चुपचाप
नींद में भी
सुनता रहा अपने आप को समेटता
जूझता रहा उसकी उमंग से,

मैं अँधेरे में पानी का चेहरा था
पेड़ों और दीवारों पर बहता


© मोहन राणा

"धूप के अँधेरे में" (2008) से

Monday, March 22, 2010

इस बरस

जब हम बीच में होते हैं तो किनारों पे चली जाती हैं दूरियाँ,
पास आकर भी भूल जाता हूँ निकटता की बेचैनी
किनारों पर टहलते हुए.

इस बरस कैद कर लिया
पाताल की देवी ने बसंत,
फूटते हैं बर्फीले ज्वालामुखी
कुछ और दरारें चटखती सतहों में
गिरे हुए मलबों में अपना घर खोजते लोग
धुरी पर डगमगाती धरती
खो देती कुछ क्षण,
इन प्रदेशों में पतझर की खोज में
देर से आएगा बसंत

©मो.रा.


Tuesday, March 16, 2010

Translation

Does language convey anything? except translating the reality defined by the language. What is a translation? .. रुक जाती है सांस, आरंभ होता सपना
what happens, when we stop translating : the breath stops. The dream begins.

Living in Language

Last month I had an opportunity  to attend the launch of "Living in Language", Edited by Erica Hesketh. The Poetry Translation Cen...