Saturday, August 11, 2012

नया कविता संग्रह / New Poetry Collection

रेत का पुल
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मोहन राणा की कविता हमेशा से दूर-पास की आहटों को एक-साथ सुनती-गुनती रही है। साथ ही पास दूर के दृश्यों के मर्म को अपनी ही तरह के बिंबों में रचती रही है। और उनकी कविता में स्मृतियों की भी एक अहम भूमिका है। नतीजतन ये सारी चीज़ें परस्पर गुंथ कर हमें कई ऐसे अनुभवों से जोड़ती हैं, जो प्राय: अलभ्य  से होते हैं। वे दृष्टि का कुछ विस्तार करते हैं, और उनके सूक्ष्म-जोड़ हमें कई अदेखे संवेदन-सूत्र थमाते हैं। इन अनुभवों से गुजरना प्रीतिकर होता है, और कई बार उनमें विन्यस्त, चुभन और प्रश्न, हमें वस्तु-स्थिति के एक नये आकलन के लिए उकसाते हैं। कुल मिलाकर यह कि उनकी कविताओं का पाठ हमें दैनंदिन जीवन-प्रसंगों के आत्मीय रूप से एक नये प्रकार से परिचित कराता है, साथ ही अपनी विद्युत गति उड़ानों से सुदूर ले जाकर हमारे 'दैनंदिन सामाजिक परिवारिक जीवन को कुछ नये आयामों की यात्रा कराता है। एक सधी हुई भाषा में, उनकी कविता अपनी प्रकृति रमणीयता में भी हमें आकर्षित करती है। इस संग्रह में भी उनके ये गुण भरपूर उपस्थित हैं। पर उल्लेखनीय है कि इसमें उन्होंने अपने लिये एक नयी काव्य भाषा ईजाद की है। ये कविताएँ एक नई लय लिये हुए हैं। इनमें उर्दू कविता की भी काव्यक विधियों का एक समावेश है और ये सहज ही हमें शमशेर जैसे कवि के काव्य परिसर की भी कुछ याद दिलाती हैं।
इनकी चिंताएँ भी अधिक व्यापक हैं। एक बदली हुई 'ग्लोबल दुनिया में ये जीवन-मूल्यों' की तलाश में केवल बेचैन सी हैं, इनमें एक नई 'स्वप्नशीलता भी है। अंतर्मन के तहखानों में ये एक नए अंदाज में प्रवेश करती हैं, साथ ही बाहरी संसार की गतिविधियों को एक अधिक बेधक दृष्टि से देखती हैं, जहाँ 'भाषा के छिलकों की एक बाढ़ सी है पार पाना भाषा को है। उसके खरे रूप में। इस संग्रह से मोहन राणा की कविता-भूमि संपन्नतर हुई है और स्वयं हिंदी कविता को भी इससे एक ऐसा अंदाजे बयाँ मिला है, जिसकी ओर बहुतों का ध्यान जाएगा। 
प्रयाग शुक्ल
 
 
प्रकाशक-
अंतिका प्रकाशन 
http://www.antikaprakashan.com/p/blog-page_13.html

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