सवाल नहीं है आज सुनकर
उठता है सवाल
इस बात पर,
मैं अब आकाश को नहीं ताकता पैरों को घूरता हूँ
मुझे करनी थी प्रतीक्षा उनकी इस पल यहीं
इस एकांत में इस कोलाहल में इस चुप्पी में अपने भीतर इस चीख में
यहीं इस खुशी में इस क्रोध में इस उदासीन समय की करवट में
यह खरोंच ऊँगली पर
धीमे से धड़कती है पीड़ा उसके आसपास,
कहीं चला तो नहीं गया मैं कहीं और आकाश को ताकते
मेरी अपनी छाया गुम है इस एकाएक जवाब पर
मेरा प्रश्न क्या आज सवाल हैं
दिन करता रहा प्रतीक्षा
और प्रश्न जैसे आकर जा भी चुके
तो क्या दिन बीत गया
सुबह हो गई
फिर यह शाम कैसी,
जवाब जिनके लिए नहीं शब्द अब मेरे पास
सवाल नहीं है आज
30.11.09
© मोहन राणा
Monday, November 30, 2009
Saturday, November 07, 2009
सबसे ऊँची छत
सबसे ऊँची छत से क्या बादल दिखाई देते हैं
क्या वहाँ भी होती है बारिश
क्या वहाँ भी बहते हैं पतझर के आँसू गिरती हुई बूँदों में
क्या वहाँ भी होती है दोपहर सुबह और शाम के बीच....
क्या वहाँ दुनिया को बनाने वाला कुम्हार रहता है
मिट्टी की बनी यह दुनिया टूट गई है सबसे ऊँची छत से गिर कर
क्या ठीक कर सकता है वह इसे.
©मोहन राणा
क्या वहाँ भी होती है बारिश
क्या वहाँ भी बहते हैं पतझर के आँसू गिरती हुई बूँदों में
क्या वहाँ भी होती है दोपहर सुबह और शाम के बीच....
क्या वहाँ दुनिया को बनाने वाला कुम्हार रहता है
मिट्टी की बनी यह दुनिया टूट गई है सबसे ऊँची छत से गिर कर
क्या ठीक कर सकता है वह इसे.
©मोहन राणा
Friday, November 06, 2009
जहाँ बादल सुनाते हैं संदेश
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