Saturday, April 29, 2006

आविष्कार

तपती गलती उकेरी हुई धरती,सूखती ,दलदल कहीं रेत के ववंडर झेलती,
करती प्रतीक्षा उसके उदूघाटन का, तय करती कविता अपना जनम खुद ही

Thursday, April 27, 2006

गिरगिट

हम रुक कर चौंकते हैं जैसे पहली बार
देखते एक दूसरे को
जानते हुए भी कि पहचान पुरानी है,
करते इशारा एक दिशा को
वह हरा कैसा है क्या रंग वसंत का है!
वह गर्मियों का भी नहीं लगता,
आइये ना वहाँ साथ सुनने कुछ कविताएं
पर उन वनों में विलुप्त है सन्नाटा
अनुपस्थित है चिड़ियाँ
कातर आवाजे वहाँ ...
कैसे मैं जाउँ वहाँ कविताएँ सुनने, हम
रुकते हैं पलक झपकाते
झेंपते
जैसे छुपा न पाते झूठ को कहीं टटोलते
कोई जगह
बदलते कोई रंग
कोई चेहरा




27 अप्रैल 2006 ©

Saturday, April 22, 2006

डाकिया

हम जो सोचते हैं वास्तविकता कुछ और होती है.
अनुभव ही सब कुछ है, प्रश्न भी वही उत्तर भी,
देव वही दानव वही ,चेतना और पदार्थ भी, अर्थ और अर्थहीन दोनों वही, बस अनुभव
नींद और जागने का. दरवाजे पर डाकिया घंटी बजाता है सुबह सुबह,
मुस्कराता है - मुझे नींद में चलता देख - कहता है, 'मुझे मालूम था तुम भीतर ही थे'.

©22.4.06

Sunday, April 16, 2006

Vicarage at Nuenen



न्यूनेन में रहते हुए वेन गॉफ ने सितम्बर अक्तूबर 1885 में Vicarage at Nuenen नामक तैल चित्र बनाया यह चित्र इस समय वेन गॉफ संग्रहालय एमस्टरडम में है , इसी नाम से एक रेखांकन भी उसने बनाया था.

Saturday, April 15, 2006

a day with Vincent in Nuenen



a cold day, with mixed sky and chilling wind, as we wondered around the streets of Nuenen with Vincent,
... I guess he was there. Though the little museum was closed.
We saw the "
Reformed Church"
he
painited in 1884 "Congregation Leaving the Reformed Church in Nuenen"

there was
an introspective stillness... as we slowly walked towards the edge of the town to find the windmill.






in nuenen on 10th april 2006

©photo mrana

Sunday, April 02, 2006

इंद्रधनुष


शनिवार अप्रैल का पहला दिन, बारिश और धूप की तनातनी सारा दिन चलती रही, एक गहरी बौछार फिर उसका जवाब..
एक पारदर्शी चमकती धूप से- कि रुक देखने को विविश हो जाता आकाश अपनी ही नीलिमा को, फिर कोई गुस्साया बादल... छींटाकशी आरंभ होती ...
छींटो की बौछार ... ,
प्रकृति की इस जुगलबंदी पर अभी सोच ही रहा था कि पूरब का आकाश एक विशाल इंद्रधनुष से जगमगा गया.
शाम के 6.25 हो रहे थे , मैं उसे देखता रहा धीरे धीरे वह विलीन होता गया.



1 april 2006
eastern sky, fox hill, Bath - around 6.25 pm Saturday
©mrana

Saturday, April 01, 2006

भौंरा


खिड़की खोलते ही एक ठंडी हवा का एक झोंका कमरे में घुस जाता है लगता है धूप निकलेगी यह सोचकर कुर्सी पर बैठा ही था कि भिनभिनाहट सुनाई दी,
पलट कर देखा एक मोटा सा भौंरा खिड़की के पास भिनभिना रहा था जैसे झांक कर हालचाल पूछ रहा हो .... फिर बिना कुछ सुने वह आगे खहीं बढ़ गया,

क्या गर्मियाँ आ गईं? वसंत बिना बताए आ कर चला भी गया!

Living in Language

Last month I had an opportunity  to attend the launch of "Living in Language", Edited by Erica Hesketh. The Poetry Translation Cen...