क्या अतीत से ही हम पहचनाते हैं भविष्य के वर्तमान को,
आइने भी नहीं कर पाते पुष्टि हमारी शंकाओँ की
हर सुबह किसी रात का सपना ही होती है
गहराई सतहों के उद्वेलन में नहीं होती
पर हमारे पास नहीं मछली की सांस कि वहाँ उतर सकें
Tuesday, May 24, 2011
Monday, May 09, 2011
भविष्य
Thursday, May 05, 2011
रेत के पुल पर गिरगिट
सच है क्या - ना दिखे तो भ्रम
दिखे तो संशय होता है खुद पर
नदी पत्थर हो चुकी
रेत के पुल पर गिरगिट
किसी परछाईं के जीवाश्म को देख चौंकता
© मोहन राणा
दिखे तो संशय होता है खुद पर
नदी पत्थर हो चुकी
रेत के पुल पर गिरगिट
किसी परछाईं के जीवाश्म को देख चौंकता
© मोहन राणा
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Living in Language
Last month I had an opportunity to attend the launch of "Living in Language", Edited by Erica Hesketh. The Poetry Translation Cen...
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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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Ret Ka Pul | Revised Second Edition | रेत का पुल संशोधित दूसरा संस्करण © 2022 Paperback Publisher ...