Saturday, February 02, 2013

धूप

कई दिनों बाद खिली धूप  के साथ दिन निकला अँधेरे की कोख से, दूर के तारों को छोड़.  सपनों में कोई उम्मीद जतलाकर चमकते नीले आकाश पर कपासी बादल धीमे धीमे बहते रहे हवा ठंडी थी और जमीन महीनों की बारिश के बाद नम, डेफोडिल के पौधे प्रकट होने लगे हैं.
फूल आएँगे गर इसी तरह हर दिन रात के भीतर से धूप साथ लाना ना भूले तो.
क्या इस वसंत में डेफोडिल  खिलेंगे.. सेब के पेड़ों पर फूल आएँगे... बदलेंगी करवट छायाएँ अतीत की.
मैं सारा दिन याद करता उस उम्मीद के बारे.

Living in Language

Last month I had an opportunity  to attend the launch of "Living in Language", Edited by Erica Hesketh. The Poetry Translation Cen...