Friday, September 17, 2010

खिड़की



रात भर जागते
वे सितारे जहाँ हैं
दिखते अँधेरे आकाश में डबडबाते
लाखों प्रकाशवर्ष बाद
वे नहीं उपस्थित सिवा रोशनी के,
भरोसा दिलाती उनकी चमकती अनुपस्थिति
किसी किनारे को खोजते भटके वर्तमान को

तुम्हारा संगीत तुम्हारी लछमन रेखा
तुम्हारी पुलिया
तुम्हारी नौका
तुम्हारे पंख
तुम्हारी खिड़की है,
तुम्हारा संगीत अनुगूँजता
आँखें बंद मैं सुनता देखता
समय की आत्मा पर तुम्हारा प्रतिबिम्ब
17.9.10 ©

Friday, September 03, 2010

कुछ पत्थर

जुटा हूँ बाँध बनाने में
एक नई नदी के लिए
जनमेगा एक नया समुंदर उसके गर्भ से,
कुछ पत्थर जमा किये हैं बादलों को रोकने के लिए
जागेगा कोई पहाड़ उनमें सोया हुआ



3.9.10 ©

Living in Language

Last month I had an opportunity  to attend the launch of "Living in Language", Edited by Erica Hesketh. The Poetry Translation Cen...