Monday, September 04, 2006

कल फिर कल


मैं सोया सुबह के लिए

जागा इस पल के लिए,

कुछ लिखा जीवन के लिए

ली एक लंबी सांस

छुआ दूर के दृश्य को

एक बादल रुका धूप घड़ी को देख

क्या

दिन था

या

बीच रात

कल फिर कल

देखा पुरखों के सपने को

वे सोए

और मैं जागा उस नींद में




4.9.2006 © मोहन राणा

Living in Language

Last month I had an opportunity  to attend the launch of "Living in Language", Edited by Erica Hesketh. The Poetry Translation Cen...