

पतझर की आहटें पास आ रही है पेड़ो की टहनियाँ खाली होने लगी हैं और पत्तों के रंग पीले लाल. वे बारिश में गीले होते सूखते और गिरते हैं रात दिन. हवा मंडराने लगी है यहाँ वहाँ जैसे खोकर अपनी दिशा, वह गिरे हुए पत्तों को चुनती जैसे उनमें कुछ छिपा हो .. कुछ बचा हुआ समय. शाम को मौसम ठंडा होने लगा है शरद अपनी गहराई के निकट है,
कल एक तितली जाने कहाँ से कमरे में घुस आई, खिड़की के शीशे से टकराती उसे पंख फड़फड़ाती .. उसे नीले आकाश और धूप को छूना था पर शीशे की दीवार उसे रोके हुए थी, उसे देखकर आश्चर्य तो हुआ कि गरमियों में एक भी दिखाई नहीं दी फिर यह कहाँ से चली आई,

एक बात ही उससे हो गई, बन गई.
खिड़की खोली, वह कुछ पल को उँगली पर बैठी रही और हवा एक झोंका आया और उसके पंख खुले.