Sunday, February 08, 2009
हिममानव
ताकती उनकी खुली आंखें सफेद आकाश को
चलते चलते वे जैसे रूक गए पार्क की ढलान पर
संभवी मुद्रा में
पेडो़ं के बीच
ठिठका
उन्हें देख
कहीं वे
लोग
जनमे हो जैसे इस बार जल चेतना में
मुझ से डर कर तो नहीं बन गए बर्फानी बुत
वे सोचते होंगे
कैमरे के लेंस से
अपलक उन्हें देखता है कोई हिममानव?
भय अज्ञान है
सच्चाई भय
और अज्ञान सच्चाई है
© 8/2/2009
Subscribe to:
Posts (Atom)
What I Was Not
Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...
-
Ret Ka Pul | Revised Second Edition | रेत का पुल संशोधित दूसरा संस्करण © 2022 Paperback Publisher ...
-
चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन