http://vatsanurag.blogspot.com/2011/02/blog-post_16.html
और उन पर गिरीन्द्र की टिप्पणी
http://anubhaw.blogspot.com/2011/02/blog-post_16.html
Saturday, February 19, 2011
Thursday, February 17, 2011
कविता की भाषा में
धीमी हो या तेज रास्ता ना छोटा ना बड़ा
यूँ तो हमारे कदम केवल पिछले कदमों को ही दुहाराते हैं
सवाल तो कदम रास्तों को जनमते हैं या मंजिलें उनकी..
-------------------------------------
पीली लाइन की मैट्रो फिर अचानक रूक गई
एक पल को गुल बत्ती में दम साध गई भीड़ में
हम अटकलें लगाने लगे,
दुनिया में फैलती जनक्रांतियों की आँधी हमारी राजधानी में
कब ?
नौटियाल जी कहते हैं, इंडिया वालों में दम नहीं !
© मोहन राणा
यूँ तो हमारे कदम केवल पिछले कदमों को ही दुहाराते हैं
सवाल तो कदम रास्तों को जनमते हैं या मंजिलें उनकी..
-------------------------------------
पीली लाइन की मैट्रो फिर अचानक रूक गई
एक पल को गुल बत्ती में दम साध गई भीड़ में
हम अटकलें लगाने लगे,
दुनिया में फैलती जनक्रांतियों की आँधी हमारी राजधानी में
कब ?
नौटियाल जी कहते हैं, इंडिया वालों में दम नहीं !
© मोहन राणा
Subscribe to:
Posts (Atom)
The Translator : Nothing is Translated in Love and War
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...

-
चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
-
Ret Ka Pul | Revised Second Edition | रेत का पुल संशोधित दूसरा संस्करण © 2022 Paperback Publisher ...