Saturday, December 31, 2016

है गोल दुनिया गोल

बादल वाले जहाज़ दो तीन दिन से गायब हैं
नीलाकाश फिर भी आंशकित करता जैसे
यह कोई सपना हो!
हवा संतुलित और पंछी आश्वस्त बल खाते हुए
कि धरती और आकाश अपनी जगह नहीं बदलेंगे।

बड़ी तितलियाँ भी मंडराती दिखाई दीं कुछ दिन पहले
खिड़कियों में बंद घर संसार के बाहर,
वसंत घट रहा है बिना कोंपलों के अभी
कई दिनों बाद यकायक चमकती धूप का भरम भी यह हो सकता है
और कुछ दिन में फिर  यथा वात मौसम, 
पर अभी हम सुखन
अपने दो पैरों पर घूमते

गोल दुनिया गोल गोल
हर दिशा में बाकी तब
इस गोल में सब कुछ समाए
ऊँचे नीचे सब आकार प्रकार
इसमें लौटते सारे रास्ते अपने प्रस्थान पर

बरख बरख स्मृति बटोरते यहाँ
रखते एक गठरी,  सौंपते एक दूसरे को
सहेजा एक सपना
यह पुराना नहीं होगा कभी
पूर्वजों के भविष्य में।


© मोहन राणा 2016
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
Wish you a fulfilling and Joyous New Year 2017.


What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...