अंगूर की बेलों में लिपट सो जाती धूप बीच दोपहर गहरी छायाओं में सोए हैं राक्षस सोए हैं योद्धा सोए हैं नायक सोया है पुरा समय खुर्राता अपने आप को दुहराते अभिशप्त वर्तमान में.
मोहन जी, बहुत ही उत्तम कविताएँ हैं। आपसे एक अनुरोध है कि कृपया अपने ब्लॉग पर टिप्पणी करने की सुविधा को चालू कर लीजिए। जिससे कि लोग आपकी कविताओं पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकें।
2 comments:
मोहन जी, बहुत ही उत्तम कविताएँ हैं। आपसे एक अनुरोध है कि कृपया अपने ब्लॉग पर टिप्पणी करने की सुविधा को चालू कर लीजिए। जिससे कि लोग आपकी कविताओं पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकें।
सुन्दर कविता है ..
Post a Comment