
दोपहर की चटख धूप में उसके सामने खड़ा मैं कुछ देर तक उसे घूरता रहा पहले कुछ आश्चर्य से फिर जिज्ञासा से, फिर एक प्रश्न के साथ -
इतने उजाले के बावजूद भी, यह अँधेरा कैसे ?
उसके बाद जैसे अपने ही मूड से संपर्क कुछ देर के लिए टूट गया.
©26/7/06
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...