Wednesday, August 30, 2006

कुछ पाने की चिंता

अपने ही विचारों में उलझता
यहाँ वहाँ
क्या तुम्हें भी ऐसा अनुभव हुआ कभी,
जो अब याद नहीं

बात किसी अच्छे मूड से हुई थी
कि लगा कोई पंक्ति पूरी होगी
पर्ची के पीछे
उस पल सांस ताजी लगी
और दुनिया नयी,
यह सोचा
और साथ हो गई कुछ पाने की चिंता

मैं धकेलता रहा वह और पास आती गई,
अच्छा विचार मुझे अपने आप से भी नहीं बचा सकता,
उसे खोना चाहता हूँ
नहीं जीना चाहता किसी और का अधूरा सपना



30.8.06 © मोहन राणा

Sunday, August 13, 2006

अस्मिता

क्या मैं हूँ वह नहीं

जो याद नहीं अब,

जो है वह किसी और की स्मृति नहीं क्या

जिनसे जानता पहचानता अपने आपको

मनुष्य ही नहीं पेड़- पंछी

हवा आकाश

मौन धरती

घर खिड़की

एक कविता का निश्वास !


पर ये नहीं किसी और की स्म़ृति क्या ?

जो याद है बस

भूलकर कुछ


13.8.06 © मोहन राणा


What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...