पिछले कुछ दिनों से नामवर सिंह जी की पंत जी के साहित्य को कूड़ा कह देने वाली टिप्पणी के संदर्भ में ईमेल मिल रही हैं, नामवर के समर्थन में छपी अखबारी (जनसत्ता और प्रभात खबर) टिप्पणियों का वितरण हो रहा है और जिन्होंने उन पर बनारस की अदालत में मुकदमा किया है उन्हें "असहिष्णु" बतलाया जा रहा है...
नामवर सिंह के वक्तव्य के कारण क्या हो सकते हैं मैंने अटकलें लगाने की कोशिश की.. शायद इसके पीछे कोई मानसिक कारण हो, राजनैतिक, सांस्कृतिक... शायद साहित्यिक ! या
हो सकता हो बनारस की गर्मी...
वैसे कुछ दिनों पहले मैंने सुना (और यह सुनी हुई बात भर है इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि मैं नहीं कर सकता, बस यह सुनी हुई बात है) दिल्ली में भी कुछ ऐसी ही बात हुई थी, एक संपादक और कवि के बीच में, किसी रस -रंजन की पार्टी में.... अवसर एक हिन्दी के नामी कवि के जन्म दिन की पार्टी! संपादक ने "घटिया" जैसे उत्तेजक और आक्रामक शब्द का प्रयोग किया... तो रस-रंजन के बाद "बल प्रयोग" तो होना ही था... कोर्ट-कचहरी की क्या जरूरत, कवि खुद ही
मामला निपटाना चाहते थे...
पर बनारस वाले मामले के संदर्भ में इस लोक में यह संभव नहीं..
इस तरह की हवा बाजी और असमावेशी घट्ठेपन की बानगियाँ आए दिन हिन्दी भाषी समाज और साहित्य में प्रकट हो रही हैं ..ना कोई आश्चर्य है ना ही निराशा यह देख कर पढ़कर और सुनकर.
कुछ महीनों पहले दिल्ली से एक कवि,अनुवादक और आलोचक का ईमेल आया
उसमें उन्होंने एक सवाल किया "आजकल आप क्या लिखने के लिए प्रसिद्ध हैं....."
उन्होंने याद किया यह सोचकर अच्छा लगा! पर उसके पीछे deal क्या थी यह नहीं स्पष्ट हो पाया
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