Sunday, May 25, 2008

गोर विडाल की बातें

गोर विडाल से चैनल 4 के जॉन स्नो की बातचीत

Wednesday, May 21, 2008

आज दोपहर

सुना लंदन में एक पेड़ किसी बस पर गिर गया
या बस उस पेड़ से टकरा गई
या वे दोनों एक दूसरे पर गिर पड़े,
एक औरत की मौत हुई
वह जा रही थी कहीं किसी काम से कि यह घटना हुई
पुलिस एक दम हरकत में आ गई,
अकस्मात के बाद कुछ सूझता नहीं
याद की हुई तैयारियाँ
अर्थहीन बुदबुदाहटें जैसे उस पल सहम गए समय की
आज दोपहर की खबर

पर पोस्टमैन तो अब गायब ही हो गया
आया ही नहीं यहाँ आज
बताइये ये हालत है इंग्लिस्तान की
मुझे याद नहीं पड़ता
घर तो बदला नहीं तीन दिनों में!


मैंने भीतर से बंद दरवाजे को देखा
लगा मैं उसके बाहर खड़ा हूं
सड़क की आवाज को सुनता


मैं घिरा हूँ अटकलों से
जैसे कई दिन से आकाश बादलों से
किसी ने सवाल किया मेरी कविता आध्यात्मिक तो नहीं लगती
मुझे खुद भी याद नहीं
मैंने चाबी कहाँ रख दी अपने को इस
गुफा में बंद करने से पहले.


20.5.08

Friday, May 09, 2008

खोज

एक खिड़की खोली
दूसरी खोली
दिखा कुछ और


दृश्य का नया कोण
खोली तीसरी
उसी दृश्य में दिखा नया धरातल
व्योम
खोली चौथी


घुस आया जैसे विहंगम कमरे में
इतना कुछ यहीं एक जगह
पर इतने व्यस्त की देख नहीं पाता
किसी मुक्ति की खोज में
दौड़ते दौड़ते
कि लगता है डर
ठहरने पल भर के लिए
गिरने से



(C) मोहन राणा 25.3.08

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

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