एक खिड़की खोली
दूसरी खोली
दिखा कुछ और
दृश्य का नया कोण
खोली तीसरी
उसी दृश्य में दिखा नया धरातल
व्योम
खोली चौथी
घुस आया जैसे विहंगम कमरे में
इतना कुछ यहीं एक जगह
पर इतने व्यस्त की देख नहीं पाता
किसी मुक्ति की खोज में
दौड़ते दौड़ते
कि लगता है डर
ठहरने पल भर के लिए
गिरने से
(C) मोहन राणा 25.3.08