Tuesday, November 09, 2010

यथार्थ की ओर




सोया तन किस का
जागा मन किसका
भागते रूका कौन सोचते
ये पैर दौड़ते हैं
या भागती हैं दूरियाँ !

जिसमें ना हो साहस
अच्छा हो वो ना बोले झूठ

मौन हैं कौवे नीरव दोपहर में
पेड़ देखा दो हज़ार पुराना
पतझर में गिरते हैं पत्ते उसके भी पिछले बसंत के.
कवि जी कहते हैं दो और दो होते हैं साढ़े तीन
मैं खोजता रहा बरसों से
अब तक इस सवाल का जवाब



© 9/11/10