लोग कहते हैं अपनी मीनार से उतर कर देखो सड़क की हालत
ऊँचाई से सब समतल ही दिखता है
पार करके तो तो देखो सड़क के खोए छोरों को
ज़मीन से देखो गिरते आकाश को
आँखें खोल कर देखो इस दुस्वप्न को
शायद अब सुनाई दे कोलाहल में गुम कोई विनती
खुरदरी हवा हर कोमलता को छील देती है यहाँ
पर कहाँ हैं वे जो देते हैं चुनौती
मुझे सच्चाई दिखाने की
उड़े जाते हैं वे उड़नखटोलों में
© मोहन राणा