Wednesday, December 29, 2010

अपनी ऊँचाई समतल



लोग कहते हैं अपनी मीनार से उतर कर देखो सड़क की हालत
ऊँचाई से सब समतल ही दिखता है
पार करके तो तो देखो सड़क के खोए छोरों को
ज़मीन से देखो गिरते आकाश को
आँखें खोल कर देखो इस दुस्वप्न को
शायद अब सुनाई दे कोलाहल में गुम कोई विनती
खुरदरी हवा हर कोमलता को छील देती है यहाँ
पर कहाँ हैं वे जो देते हैं चुनौती
मुझे सच्चाई दिखाने की
उड़े जाते हैं वे उड़नखटोलों में

© मोहन राणा

कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है / The poem Chooses Its Own Birth

Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays  "Liv...