धन्य धरती है जिसकी करूणा अक्षत
धन्य समुंदर जिसका नमक फीका नहीं होता
धन्य आकाश जो रहता हमेशा मेरे साथ हर जगह दिन रात
धन्य वे बीज जो पतझर को नहीं भूलते
धन्य वे शब्द भूलते नहीं जो चौखट पर कभी बाट लगाते दुख उसकी स्मृति को
धन्य उस विचार पहिये पर टंकी छवियाँ
जो बन जाती टॉकीज़,
आकाशगंगा के छोर चुपचाप परिक्रमा में
धन्य यह सांस
मैं कैसे भूल सकता हूँ घर
और कोने पर धारे का पानी
* पहाडों में किसी-किसी स्थान पर पानी के स्रोत फूट जाते हैं। इनको ही धारे कहा जाता है।
मोहन राणा
© 2014
Wednesday, December 31, 2014
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