Wednesday, December 31, 2014

घर

धन्य धरती है जिसकी करूणा अक्षत
धन्य  समुंदर जिसका नमक फीका नहीं होता
धन्य  आकाश  जो रहता हमेशा मेरे साथ हर जगह दिन रात
धन्य वे बीज जो पतझर को नहीं भूलते
धन्य वे शब्द भूलते नहीं  जो चौखट पर कभी बाट लगाते दुख  उसकी स्मृति को
धन्य उस विचार  पहिये पर टंकी छवियाँ
जो बन जाती टॉकीज़,
आकाशगंगा के छोर चुपचाप परिक्रमा में
धन्य यह सांस
मैं कैसे भूल सकता हूँ घर
और कोने पर धारे का पानी






* पहाडों में किसी-किसी स्थान पर पानी के स्रोत फूट जाते हैं। इनको ही धारे कहा जाता है।

 मोहन राणा
© 2014

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