Sunday, May 03, 2015

बम भरम अगड़ बगड़

Illusions का भी अपना मजा है ।
यहाँ शहर में एक आदमी अपने खोखे में जादू के खेल बेचता है अक्सर मैंने देखा है किसी गुजरते चमकृत ग्राहक को पकड़ने के लिए वो एक ट्रिक खेलता रहता है, दस पाउंड के नोट के बीच पेन ठूंस कर निकालना,  पेन नोट के आर पार हो जाता है पर पेन वापस खींचते ही, नोट बिल्कुल खरी हालत में, कोई छेद नहीं!
शायद मन की तरंगों में भी ईमेल प्रसारित होती रहती हैं। इलैक्ट्रान्स का चक्रम,  पता ही नहीं चलता, बम भरम अगड़ बगड़ और
विचार कब विचार बन जाते हैं मन के डिब्बे में ।


सदा पानी में पानी
जिसमें मिला वो हो गया पानी 
चिर बंधन जो मिला वो बन गया
बादलोें को सपना लपक सतह पर एक बुलबुला खींच
गोता उन गहराईयों में  कोई किनारा छू 
 मन मीन प्यासी इस आस में
घिरेगा  आकाश उन प्रदेशों में कभी जहाँ हवा भी डरती है दिन दुपहरी,
लिखा अलिखा रह जाता अपढ़ा
यही सुनते
जाग मच्छंदर गोरख आया
अलख अलख बोल जग भरमाया

© मोहन राणा 

No comments:

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...