Thursday, June 11, 2015

दो कविताएँ- एक जिल्द


दो कविताएँ- एक जिल्द

रेत का पुल: मोहन राणा

रेत का पुल

कविता संग्रह
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन, एकसटेंशन-II, गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
मूल्य: 200 रुपये.




लॉर्ड मैकाले का तंबू

मैं वर्नेकुलर भाषा में कविता लिखता हूँ
आपको यह बात अजीब नहीं लगती
मैं कंपनी के देश में वर्नेकुलर भाषा में कविता लिखता हूँ,

मतलब कागज पर नाम है देखें
मिटे हुए शब्दों में धुँधली हो चुकी आँखें
ढिबरी से रोशन गीली दोपहरों में,
कबीर कहे माया महाठगनि हम जानी,
और सहमति से झुका केवल कर सकता हूँ अपने आप से बात
छूट गई बोली को याद करते पहले खुद को अनसुना
कि भाखा महाठगनि हम जानी

कोई नहीं संदर्भ के लिए रख लें इस बात को कहीं
आगे कभी जब दिखें लोग आँखें बंद किये
तो पार करा दीजियेगा उन्हें रास्ता कहीं कुछ लिख कर,
मैं भी भूल गया था इसे कहीं रख
कुछ और खोजते आज ही मुझे याद आया
भाग रहा था अपने ही जवाबों के झूठ से
कहता मैं सच की तलाश में हूँ
अपने बगीचे में बाँध रखीं हैं मैंने घंटियाँ पेड़ों से,
एकाएक जाग उठता हूँ उनकी आवाजें रात सुनकर
कहीं वे गुम ना हो जाएँ
मेरे वर्नेकुलर शब्दों की तरह
----------------------------------------------------------




पानी का रंग
(जेन के लिये)

यहाँ तो बारिश होती रही लगातार कई दिनों से
जैसे वह धो रही हो हमारे दागों को जो छूटते ही नहीं
बस बदरंग होते जा रहे हैं कमीज़ पर
जिसे पहनते हुए कई मौसम गुज़र चुके
जिनकी स्मृतियाँ भी मिट चुकी हैं दीवारों से

कि ना यह गरमी का मौसम
ना पतझर का ना ही यह सर्दियों का कोई दिन
कभी मैं अपने को ही पहचान कर भूल जाता हूँ,

शायद कोई रंग ही ना बचे किसी सदी में इतनी बारिश के बाद
यह कमीज़ तब पानी के रंग की होगी !
 

 -------------------------------------------------------------------------------







   को आभार इन कविताओं को प्रकाशित करने के लिए
http://raviwar.com/footfive/f74_ret-ka-pul-by-mohan-rana-book.shtml

No comments:

कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है / The poem Chooses Its Own Birth

Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays  "Liv...