अबाबीलें किलकाती लगातीं
गोता
चौंक कर सिर उठाते पेड़
भी मेरे साथ
दिनभर की धूप में थके
क्या मैं बदल सकता हूँ
केवल सोचकर बदलाव अपने
आप
यहाँ खिड़की में
अपनी तस्वीर
© मोहन राणा
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...