Thursday, August 06, 2015

आलंबन




अबाबीलें किलकाती लगातीं गोता
चौंक कर सिर उठाते पेड़ भी मेरे साथ
दिनभर की धूप में थके

क्या मैं बदल सकता हूँ
केवल सोचकर बदलाव अपने आप
यहाँ खिड़की में अपनी तस्वीर







©  मोहन राणा

कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है / The poem Chooses Its Own Birth

Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays  "Liv...