पुरस्कार बँट चुका
बाहर लोग समोसों और चाय पर झोल रहे हैं
पर मैं हॉल में अभी भी बैठा हूँ एक सिकुड़ती मुस्कराहट को चेहरे पर रोक
बिना नब्ज़ पकड़े अपनी धड़कन सुन सकता हूँ यहाँ,
इस आशा में ताकता
खाली मंच को
वह आए
और इस बार सही सूची पढ़ कर सुनाए
बाहर लोग समोसों और चाय पर झोल रहे हैं
पर मैं हॉल में अभी भी बैठा हूँ एक सिकुड़ती मुस्कराहट को चेहरे पर रोक
बिना नब्ज़ पकड़े अपनी धड़कन सुन सकता हूँ यहाँ,
इस आशा में ताकता
खाली मंच को
वह आए
और इस बार सही सूची पढ़ कर सुनाए
कि रेडियो की आवाज़ ठीक सात बज़े का अलार्म।
ऐसी ही कोई चीज़ मुझे चाहिए
जो बिना चाहे भी उपस्थित हो हमेशा
ना रहे संताप उस वांछित के ना होने का
जो बिना चाहे भी उपस्थित हो हमेशा
ना रहे संताप उस वांछित के ना होने का
9.8.17
© मोहन राणा
© मोहन राणा