Wednesday, June 06, 2018

वसंत

Robin / Photo-Mohan Rana
रॉबिन । फ़ोटो - मोहन राणा















बरस कितने बीते यहाँ इधर
वहाँ वे कहते फिर सुनाते कहानी
याद जिसे कभी करते जब तब
हम आपको याद करते हैं मैं सुनकर जैसे भूलता
धमनियों में बहते वर्तमान के तनाव को,
वे कठिन दिन अब दवा की तरह काम करते हैं
घर की रंगाई पुताई हो रही है मौसम बदले
और यह बाजार में ब्रिकी के लिये टंगा होगा
प्रोपट्री डीलर की खिड़की पर
मुझे भरोसा था कविता पर भाषा पर नहीं रहा
जैसे अपनी हथेली का भाग्य रेखा पर नहीं रहा,
झुरमुर-झुरमुर बारिश में रॉबिन बोलती रोवन के पेड़ पर
वसंत अपनी गाँठें ही खोल रहा है अभी
विगत की अंतःकरण यात्राओं से
जाने क्या खोल रख देगा अपनी गठरी से कोंपलों के साथ




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प्राचीन कहते हैं कवि पार चला जाता है...
कवि सीमापार करता है

अब यह कौन सी सीमा
शब्द की सीमा
प्रेम की सीमा
भय की सीमा
मौन की सीमा
पार कर
वह एक लावारिस जगह का निवासी
दो खिड़कियाँ उसके हाथ में  इस ओर उस ओर
दो दृश्य एक साथ कविता उपस्थित -
मैं और तुम जैसे हमेशा हर पंक्ति में उपनिषद 

गोचर अगोर उड़ान में धरती आकाश में नहीं रहता अंतर
शायद आयाम के पार जाने की अभीप्सा
और साथ चलती रहती है आजीवन छंटाई बुनाई
और कल के बाकी वायदों के कर्ज का निपटान,
कल कहा था आज फिर 
जो बचा रह जाय उसे अपनी किताब में लिख देना,
यही मान तो मैं वापस सीमापार करता हूँ
मौन की सीमा
जब दो पैर अपनी ही परछाईं  पार करते हैं लौटते वहीं 


- मोहन राणा
©  Mohan Rana

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...