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सर्दियाँ अपने उतार पर थी और वसंत के निशान दिल्ली के कुँहासे में प्रकट होने लगे थे. मैं स्कूल की बेंच पर बैठा धूप सेंक रहा था कि मेरी नजर जमीन पर पड़े एक लिफाफे पर गई कोई मूँगफलियाँ खाकर छिलकों के साथ उसे भी वहीं फेंक गया था. यह जानने कि उस पर क्या छपा है उठाकर देखा और उसे खोल कर जब फैलाया तो उसमें कविता की किताब के दो पन्ने थे...यह मेरी पहली कविता की किताब थी. कविता ने मन में एक खिड़की खोल दी.
मैं उस आदमी की तलाश में हूँ जिसने वह ढाई सौ ग्राम मूँगफली खरीदी थी.
कभी कवि ने कविता लिखी कविता एक संग्रह में छपी किताब बिकी अनबिकी रद्दी में चली गई उसके पन्नों के लिफाफे बने, लिफाफे बिके, मूँगफली वाले से किसी ने मूँगफली खरीदी स्कूल की बेंच पर आराम से उन्हें खा चबा के छिलकों के साथ वह लिफाफा फेंक गया.
कुछ देर बाद एक हाथ उस कचरे की ओर बढ़ा, छपे अदृश्य हो गए शब्दों में फिर से जनम लिया कविता ने.