Tuesday, November 21, 2006

पुर्नपाठ


जानना


रात में पार करता छतें
छाया की तरह वह पक्षी

उत्तर के तारा समूह में
चमकता वह तारा
किताबों में नहीं हैं सब नाम,
आना जाना!

पहाड़ों में चलते
यह जाना



( कविता संग्रह "जगह" से पृष्ठ 39, जयश्री प्रकाशन,1994)

© मोहन राणा

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