
जानना
रात में पार करता छतें
छाया की तरह वह पक्षी
उत्तर के तारा समूह में
चमकता वह तारा
किताबों में नहीं हैं सब नाम,
आना जाना!
पहाड़ों में चलते
यह जाना
( कविता संग्रह "जगह" से पृष्ठ 39, जयश्री प्रकाशन,1994)
© मोहन राणा
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