मुझे नहीं मालूम
नहीं मालूम कि तुम जानना क्या चाहते हो !
यही बचाव
सफाई मैं देता रहा
सच के सवाल पर
और वे पूछते रहे फिर भी
क्योंकि उन्हें शक था मेरे सच पर
मैं तो बस एक चींटी हूँ
ले जाता अपने वजन से कई गुना झूठ
यहाँ से वहाँ
उसे सच समझ कर
मुझे करना है
मुझे कुछ जानना है
बनानी है पहचान आइने में
सोच सोच
अपने को उपयोगी रखता रहा
ताकि वे मुझे भूलें ना
मैं बुरा बनता गया
डूबता हुआ सूरज छोड़ गया
सुनहरे कण पत्तों पर,
पेड़ उन्हें धरती में ले गया अपनी जड़ों में
और कुछ मैंने छुपा लिए पलकों में
बुरे मौसम की आशंका में,
किसी दरार को सींते हुए.
एक बाढ़ आएगी कहीं से मुझे खोजते हुए.
Sunday, July 22, 2007
The Translator : Nothing is Translated in Love and War
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...
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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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