Wednesday, December 26, 2007

बड़े दिन के बाद

वैसे बड़े दिन से पहले साल का सबसे छोटा दिन भी आता है , २१-२२ दिसंबर को वह दिन त्तरी गोलार्द्ध में शीत संक्रांति के रूप में मनाया जाता है , तो खैर उसके बाद दिन बड़े होते ही जाते हैं।
आज दोपहर को मैं शहर में टहलने को निकला
क्रिसमस के बाद लोग खुश नज़र नहीं आते शायद ठंड की वज़ह से या कुछ दिनों में आने वाले मोटे बिल की चिंता में सोचते, सड़कों पर एक ठंडी मायूसी लौट आती है। अभी कुछ दिन और हैं इस साल में और हर ओर बाजार में सेल भी लगेंगी, कुछ तगड़ी शॉपिंग भी होगी और मौसम करवट बदलता रहेगा। अगले साल को आने से कोई रोक थोड़े ही रहा है। चाहे भी कोई तो भी - उस आते ही अतीत को जीना पड़ता ही है, आखिर अब तक अतीत ही तो जिया है.

2 comments:

अजित वडनेरकर said...

अच्छी बात....

दिनेशराय द्विवेदी said...

साल तो रोज आता है, रोज जाता है। कमबख्त मौसम है कि बदलता रहता है। समय रुकता नहीं कभी, चलता रहता है। सब कुछ है समय, न होता तो कुछ न होता। पड़ा होता सब कुछ बन्द एक बिन्दु में।

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...