यहाँ तो बारिश होती रही लगातार कई दिनों से
जैसे वह धो रही हो हमारे दागों को जो छूटते ही नहीं
बस बदरंग होते जा रहे हैं कमीज पर
जिसे पहनते हुए कई मौसम गुजर चुके
जिनकी स्मृतियाँ भी मिट चुकी हैं दीवारों से
कि ना यह गरमी का मौसम
ना पतझर का ना ही यह सर्दियों का कोई दिन
कभी मैं अपने को ही पहचान कर भूल जाता हूँ,
शायद कोई रंग ही ना बचे किसी सदी में इतनी बारिश के बाद
यह कमीज तब पानी के रंग की होगी !
© मोहन राणा 8.9.2008