Monday, December 29, 2008
मंजीत बावा
सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया को पढ़ता हूँ खबरों की सूची में एक खबर पर नजर पड़ती है 'मंजीत बावा नहीं रहे', वे पिछले तीन साल से कोमा में थे. मुझे 1986-90 के दौरान उनसे हुई मुलाकातें ध्यान आने लगती हैं रवीन्द्रभवन, गढ़ी स्टूडियो, धूमीमल गैलरी,त्रिवेणी या कहीं रास्ते में. स्मृतियों के डिब्बे में बोलती पड़ती हैं आवाजें, चल पड़ती हैं मानसिक चित्रपट की खिड़कियों में कुछ रीलें... और बाहर एक रंगहीन ठंडा आकाश, उदास धूप की कुछ कतरनें
Sunday, December 07, 2008
शोकगीत
दम साधे सावधान
कि सांस बेचैन है फेफड़ों में,
आतंक के गलियारों में विलुप्त हैं शोकगीत इस बार,
चुप क्यों हैं शोकगीतों के कवि
उनका दुख आक्रोश बेचारगी
अपनी अनुपस्थिति का कोई कारण बूझते
कहाँ हैं वे कवि?
अकेले नहीं पूरी हो सकती यह कविता
चीखों के बियाबान में,
सबसे पहले भूल जाते हैं
आइने के सामने हम अपने को ही
©मोहन राणा
Subscribe to:
Posts (Atom)
What I Was Not
Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...
-
Ret Ka Pul | Revised Second Edition | रेत का पुल संशोधित दूसरा संस्करण © 2022 Paperback Publisher ...
-
चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन