Monday, December 29, 2008

मंजीत बावा


सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया को पढ़ता हूँ खबरों की सूची में एक खबर पर नजर पड़ती है 'मंजीत बावा नहीं रहे', वे पिछले तीन साल से कोमा में थे. मुझे 1986-90 के दौरान उनसे हुई मुलाकातें ध्यान आने लगती हैं रवीन्द्रभवन, गढ़ी स्टूडियो, धूमीमल गैलरी,त्रिवेणी या कहीं रास्ते में. स्मृतियों के डिब्बे में बोलती पड़ती हैं आवाजें, चल पड़ती हैं मानसिक चित्रपट की खिड़कियों में कुछ रीलें... और बाहर एक रंगहीन ठंडा आकाश, उदास धूप की कुछ कतरनें

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

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