Wednesday, February 17, 2010

कालापानी नीली लहरें

कर दो दान चुराया माल- भला करे भगवान
ना लिखे भी
ना सोचे भी
ना चीख पुकार के भी
नानाविध उपकरण और विधियाँ भी बेकार हैं
उपाय यही इस मन से मोक्ष का

अब खाली दानपात्र में बस बचा मैं ही हूँ
चुराता नहीं जिसे वहाँ से कोई ,
कभी कभी देखना भी जरूरी होता है
आइने को अपने अलावा भी

© मोहन राणा 17.2.10

कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है / The poem Chooses Its Own Birth

Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays  "Liv...