Tuesday, May 24, 2011

मछली की सांस

क्या अतीत से ही हम पहचनाते हैं भविष्य के वर्तमान को,

आइने भी नहीं कर पाते पुष्टि हमारी शंकाओँ की
हर सुबह किसी रात का सपना ही होती है

गहराई सतहों के उद्वेलन में नहीं होती
पर हमारे पास नहीं मछली की सांस कि वहाँ उतर सकें

कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है / The poem Chooses Its Own Birth

Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays  "Liv...