Book Details | |
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Publisher | Antika Prakashan |
Publication Year | 2012 |
ISBN-13 | 9789381923221 |
ISBN-10 | 9381923221 |
Language | Hindi |
Binding | Hardcover |
Number of Pages | 96 Pages |
Monday, December 17, 2012
Ret ka Pul /poetry collection/ Mohan Rana
Mohan Rana's poetry is always tuned to
sounds from near and afar. At the same time it captures in its images
the essence of close and distant sights. In his poetry memories too
play an important role. Weaving together all of these, it connects us
with experiences which are very rare. They expand our vision and
their subtle connections hand us some invisible strings of
perception. Passing through these experiences is pleasant, yet often
the questions and the sting of pain present in them provoke us to
appraise reality anew. Reading his poetry acquaints us with the
intimate side of daily life in a new way. At the same time, it takes
us along at the speed of lightning and makes us travel through new
dimensions of everyday social and family life. Written in
accomplished language, his poetry attracts us also with its natural
charm.
These qualities are abundantly present
in Mohan Rana’s new collection. Moreover, it is notable that in it
he has also invented a new poetic language for himself. These poems
have a new cadence. Urdu poetic forms have been included and this
naturally reminds us of the poetic range of a lyricist like Shamsher.
These poems have wide concerns. They
are not only restless in their search for life-values in a changed
global world; there is also a dreaminess about them. They
enter the deepest folds of the psyche in a new manner, and at the
same time look at the happenings in the outside world with a piercing
gaze; world which is flooded with scraps of language yet language
itself has to overcome this deluge
to regain its pure form. This collection has made the terrain of
Mohan Rana's poetry more fertile and given Hindi poetry itself a
personal expression which will attract the attention of many.
Prayag Shukla 18/7/12
Saturday, August 11, 2012
नया कविता संग्रह / New Poetry Collection
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मोहन राणा की कविता हमेशा से दूर-पास की आहटों को एक-साथ सुनती-गुनती रही है। साथ ही पास दूर के दृश्यों के मर्म को अपनी ही तरह के बिंबों में रचती रही है। और उनकी कविता में स्मृतियों की भी एक अहम भूमिका है। नतीजतन ये सारी चीज़ें परस्पर गुंथ कर हमें कई ऐसे अनुभवों से जोड़ती हैं, जो प्राय: अलभ्य से होते हैं। वे दृष्टि का कुछ विस्तार करते हैं, और उनके सूक्ष्म-जोड़ हमें कई अदेखे संवेदन-सूत्र थमाते हैं। इन अनुभवों से गुजरना प्रीतिकर होता है, और कई बार उनमें विन्यस्त, चुभन और प्रश्न, हमें वस्तु-स्थिति के एक नये आकलन के लिए उकसाते हैं। कुल मिलाकर यह कि उनकी कविताओं का पाठ हमें दैनंदिन जीवन-प्रसंगों के आत्मीय रूप से एक नये प्रकार से परिचित कराता है, साथ ही अपनी विद्युत गति उड़ानों से सुदूर ले जाकर हमारे 'दैनंदिन’ सामाजिक परिवारिक जीवन को कुछ नये आयामों की यात्रा कराता है। एक सधी हुई भाषा में, उनकी कविता अपनी प्रकृति रमणीयता में भी हमें आकर्षित करती है। इस संग्रह में भी उनके ये गुण भरपूर उपस्थित हैं। पर उल्लेखनीय है कि इसमें उन्होंने अपने लिये एक नयी काव्य भाषा ईजाद की है। ये कविताएँ एक नई लय लिये हुए हैं। इनमें उर्दू कविता की भी काव्यक विधियों का एक समावेश है और ये सहज ही हमें शमशेर जैसे कवि के काव्य परिसर की भी कुछ याद दिलाती हैं।
इनकी चिंताएँ भी अधिक व्यापक हैं। एक बदली हुई 'ग्लोबल’ दुनिया में ये जीवन-मूल्यों' की तलाश में न केवल बेचैन सी हैं, इनमें एक नई 'स्वप्नशीलता’ भी है। अंतर्मन के तहखानों में ये एक नए अंदाज में प्रवेश करती हैं, साथ ही बाहरी संसार की गतिविधियों को एक अधिक बेधक दृष्टि से देखती हैं, जहाँ 'भाषा के छिलकों’ की एक बाढ़ सी है पार पाना भाषा को है। उसके खरे रूप में। इस संग्रह से मोहन राणा की कविता-भूमि संपन्नतर हुई है और स्वयं हिंदी कविता को भी इससे एक ऐसा अंदाजे बयाँ मिला है, जिसकी ओर बहुतों का ध्यान जाएगा।
—प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक-
अंतिका प्रकाशन
http://www.antikaprakashan.com/p/blog-page_13.html
Monday, July 09, 2012
खाकरोबी
गीले बगीचे का खाकरोब
धूल को ढूँढता हूँ बांझ हरियाली में
पतझर को समेटते
मेरे बोरे में बंद में पिछले वसंत के टूटे सपने...
© मोहन राणा
9.7.12
Sunday, July 08, 2012
Review of ' Poems' in Poetry London, spring issue
Self-consciousness or Simple Ceremony
Declan
Ryan on pamphlets and shorter small press collections in Poetry London, Spring 2012.
POEMS
(Dual-language chapbook)
Mohan Rana
Translated by Bernard O'Donoghue and Lucy Rosenstein
Published by
The Poetry Translation Centre, London
Price £4 plus postage and packing.
Thursday, May 10, 2012
कुछ और कविताओं के अनुवाद / Some more poems in translations
Selection of Poems translated from Hindi by Bernard O'Donoghue, Lucy Rosenstein and Arup K Chatterjee
is out at
http://dogearsetc.com/book_details.jsp?resourceID=35557
Ed. Arup K Chatterjee
Asst. Ed. Amrita Ajay
Writers -
Brian Wrixon
Amit Ranjan
Arunima Sen
Veronica Pamoukaghlian
Vishesh Unni Raghunathan
Mohan Rana
Manash Bhattacharjee
Murissa Shalapata
C. S. Bhagya
Arup K. Chatterjee
Photographs by:
Dwaipayan Ghosh (Cover)
Arup K. Chatterjee (Inside)
Coldnoon: Travel Poetics, Spring 2012
by Arup K. Chatterjee (Ed.)
List Price: INR 190.0
is out at
http://dogearsetc.com/book_details.jsp?resourceID=35557
Ed. Arup K Chatterjee
Asst. Ed. Amrita Ajay
Writers -
Brian Wrixon
Amit Ranjan
Arunima Sen
Veronica Pamoukaghlian
Vishesh Unni Raghunathan
Mohan Rana
Manash Bhattacharjee
Murissa Shalapata
C. S. Bhagya
Arup K. Chatterjee
Photographs by:
Dwaipayan Ghosh (Cover)
Arup K. Chatterjee (Inside)
Saturday, March 17, 2012
पनकौआ
कुछ दिनों में आएगा एक मौसम
इस अक्षांश में अगर वसंत हुआ
मैं कपड़ों को बदलूँगा
आस पास के नक़्शे देखूँगा टहलने के लिए
पेड़ों पर कोंपले आएँगी
बची हुई चिड़ियाएँ लौटेंगी दूर पास से,
आशा बनी है ऐलान ना होगा खबरों में
किसी नई लड़ाई का
खंखारूँगा गला पूरा कहने अधूरा कि चुप हो जाउँगा
लंबा हो इतना इस बार मौसम कि यादें जल्दी ना लौटें
पतझर की, शब्दों के एकांत में
#
छोटा होता जा रहा वसंत हर साल
छोटा हो रहा है हर साल वसंत में,
कभी लगता शायद दो ही मौसम हों अब से
दो जैसे
अच्छा बुरा
सुख दुख
प्रेम और भय
तुम और मैं
जिनमें बंट जाएँ पतझर और वसंत और होती रहे सूखती बारिश साल भर
#
यूँ ही सोचा लिखा जाना रसोई से आती किसी स्वाद की गंध
अपनी आस्तीन में पाकर
नीरव पिछवाड़े में कुछ बूझने की चाह में
एक छोटी सी जगह में कोई तिल भर कुनिया खोजता
तो कुछ दिनों में आए केवल एक समय
दुनिया को बाँटने
जिसे याद रखने के लिए भूलना पड़ेगा सब कुछ
जरूरी सामान की पर्चियों के साथ अकेले,
जीने के लिए केवल सांस ही नहीं
प्रेम की आँच मन के सायों में
हाथ जो गिरते हुए थाम लेता
#
रोज़ की रेज़गारी गिनतारा में जमा बेगार के उधारों को जोड़ते
जर्जर समकाल में घबराए सूखे गालों को टटोलते
नहीं देखा मैंने अब तक इस व्यतीत को,
आइने के भीतर से
जब लगाता हूँ मैं छलांग उसके उजले अनजान में
कुछ पाने कुछ खोकर.
Friday, March 02, 2012
Water it with love/An exhibition of paintings
http://riegaloconamor.blogspot.com/
Riegalo con Amor (water it with love)
Con traducciones visuales de poemas
(Visual translations of poems) de Mohan Rana.
An exhibition of Paintings by
Nereida Jimenez Fuertes
21st Feb - 9th March 2012
I.E.S. Jerónimo Zurita
Zaragoza, Spain
Riegalo con Amor (water it with love)
Con traducciones visuales de poemas
(Visual translations of poems) de Mohan Rana.
An exhibition of Paintings by
Nereida Jimenez Fuertes
21st Feb - 9th March 2012
I.E.S. Jerónimo Zurita
Zaragoza, Spain
Thursday, February 16, 2012
Monday, February 13, 2012
पहला विश्व रेडियो दिवस - 13 फरवरी 2012 / The first World Radio Day 13 February 2012
फिलिप्स का रेडियो
उस पर विविध भारती और समाचार सुनते घर पुराना हो गया
उसके साथ ही ऊँची नीची आवाज़ें कमजोर तरंगें
उसके नॉब भी खो गये पिछली सफेदी में
धूप में गरमाये सेल रात के अँधेरे में एकाएक चुप हो जाते हैं
समाचारों के बीच ,
आंइडहोवन* की खुली सड़कों में तेज हवा से बचते शहर के बीच
खड़ी विशाल फिलिप्स कॉर्पोऱेशन की इमारत को देखता,
जेब्राक्रासिंग पे खड़ा सोचता,
क्या यह फिलिप्स रेडियो है !
©
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* हॉलैंड में एक शहर
© मोहन राणा
कविता संग्रह "इस छोर पर "(2003) में संग्रहित
वाणी प्रकाशन, दिल्ली
poem :
Philips Radio / Mohan Rana
Philips Radio
My home grew wizened on its Vivid Bharati
Its highs and lows, the fluctuating waves
Its knob has forsaken us in our last whitewash
Cells heated in the sun turn silent by nightfall
In between the headlines
Cowering from the rough wind in the open streets, at the heart of Eindhoven
I stand near a large building of Philips Corporation
I walk the zebra-crossing ponderingly
Is it our Philips Radio?
Translation from Hindi : Arup K Chatterjee
Friday, January 27, 2012
नीलाकाश
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What I Was Not
Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...
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Ret Ka Pul | Revised Second Edition | रेत का पुल संशोधित दूसरा संस्करण © 2022 Paperback Publisher ...
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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन