(संदीप राय चौधरी के लिए)
अपने दुखों के स्नायु तंतुओं को जोड़
मैं भरता पींग छूने मन की डालों के ओर छोर
जो आश्वस्त कर सके,
बीत जाएगा यह भी
विचलित धड़कनों में बल खाता दोपहर का अंतराल
पर इस बार मैंने लिखा
यहाँ आया था मैं निराखर अहेरी
खोये आकाश के दुपहरी साये
उठाए झोला भर जीवन टूटे शब्दों का,
लाल पत्थर के स्ट्रासबर्ग कथीड्रल की दीवार पर
गोया कभी पढ़ने यह आश्चर्य
आएगा संदीपन यहाँ
मिट चुके लिखे भविष्य को फिर लिखने!
2014
© मोहन राणा
मिट चुके लिखे भविष्य को फिर लिखने!
2014
© मोहन राणा