Tuesday, November 17, 2015

आएगा संदीपन यहाँ

 (संदीप राय चौधरी के लिए)



अपने दुखों के स्नायु तंतुओं को जोड़
मैं भरता पींग छूने मन की डालों के ओर छोर
जो आश्वस्त कर सके,
बीत जाएगा यह भी
विचलित धड़कनों में बल खाता दोपहर का अंतराल   


दुनिया के हर कोने जा लिख आए वहाँ तुम
पर इस बार मैंने लिखा
यहाँ आया था मैं निराखर अहेरी
खोये आकाश के दुपहरी साये
उठाए झोला भर जीवन टूटे शब्दों का,
लाल पत्थर के स्ट्रासबर्ग कथीड्रल की दीवार पर
गोया कभी पढ़ने यह आश्चर्य 

आएगा संदीपन यहाँ
मिट चुके लिखे भविष्य को फिर लिखने!



2014

© मोहन राणा


 

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

  8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...