अंतराल
समय यहाँ क़दम नहीं उठाता
हम घूमते हैं उसके पाँवों पर
हम घूमते हैं उसके पाँवों पर
नींद में सावधानी से चलना यह सोता नहीं है
न तो यह तुम्हारी और मेरी तरह कहीं आता जाता है
न तो यह तुम्हारी और मेरी तरह कहीं आता जाता है
पर हम कई बार आ कर गुज़र गए
अपनी परछाई के आगे पीछे
अपनी परछाई के आगे पीछे
यह ले रहा है साँस, यह जी रहा है हमारी साँसों पर
यह कभी मुस्कराता भी है
हम इसे भूल जाते हैं अतीत कह कर
पर इसे याद है भविष्य भी।
यह कभी मुस्कराता भी है
हम इसे भूल जाते हैं अतीत कह कर
पर इसे याद है भविष्य भी।
̶ मोहन राणा (*1964 , दिल्ली)
कविता 2010 में लिखी गई और 'शेष अनेक' 2016 में प्रकाशित, पृष्ठ 75
Zwischenzeit
Die Zeit erhebt ihren Schritt hier nicht
Wir umkreisen ihre Füße
Geh vorsichtig im
Schlaf
Denn er ist keine heilende Quelle
Die Zeit läuft und kehrt nicht
zurück
Aber wir, die Menschen, verlassen sogar
Den Schatten unseres
eigenen Körpers
Nach vorn und nach
hinten
Und umkreisen ihn
immer wieder
Die Zeit atmet, sie
lebt von unserem Atem
Und manchmal lacht
sie auch
Wir nennen sie
Vergangenheit
Und vergessen sie
Aber die Zeit weist
sogar die Zukunft.
- Mohan Rana (*1964, Delhi)
Poem written in 2010 & published in ‘Shesh Anek’ 2016, page 75.
Translation from Hindi to German : Ram Prasad Bhatt
शेष अनेक (कविता संग्रह)
प्रकाशक -
कॉपर कॉइन पब्लिशिंग प्रा. लि.
ISBN 978-93-84109-05-9
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