Just imagine universe itself; the vibration, the energy and the frequency!
Counting there is a deeper philosophical truth in this if what is missing from language!
मैं चुनता कुछ बसेरा पर ठहर जंगलात के पतरौल बन,
घर ही बन जाय वहीं होंगे पुरखे भी ऊँचे डांडों को ताकते
यह जनम किसका कि सुबह हुई
दोपहर और शाम हुई
उसने बताया तुम्हारी उम्र इतनी हुई,
कितनी
कितनी
समा गई एक ही शब्द में
पूछते मैं दैाड़ता रहा उसके पीछे
उठाए एक रिक्त स्थान को
पर उसे कहाँ रखूँ
इस प्रश्नपत्र में