Tuesday, April 10, 2018

Missing from language






Torus
Just imagine universe itself; the vibration, the energy and the frequency!
Counting there is a deeper philosophical truth in this if what is missing from language!













 





मैं चुनता कुछ बसेरा पर ठहर  जंगलात के पतरौल बन,
घर ही बन जाय  वहीं होंगे पुरखे भी ऊँचे डांडों को ताकते


  ©2018 Mohan Rana

Saturday, April 07, 2018

अतिरिक्त
















अतिरिक्त

यह जनम किसका कि सुबह हुई
दोपहर और शाम हुई
उसने बताया तुम्हारी उम्र इतनी हुई,
कितनी
कितनी
समा गई एक ही शब्द में
पूछते मैं दैाड़ता रहा उसके पीछे
उठाए एक रिक्त स्थान को
पर उसे कहाँ रखूँ
इस प्रश्नपत्र में


[10.3.2003]

©2018

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...