Counting there is a deeper philosophical truth in this if what is missing from language!
मैं चुनता कुछ बसेरा पर ठहर जंगलात के पतरौल बन,
घर ही बन जाय वहीं होंगे पुरखे भी ऊँचे डांडों को ताकते©2018 Mohan Rana
Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays "Liv...