Tuesday, March 07, 2006

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ब्लाग

देखें तो कौन रहता है इस घर में
किसी आश्चर्य की आशा
धीरज से हाथ बाँधे खड़ा
मैं देता दस्तक दरवाजे पर
सोचता- कितना पुराना है यह दरवाजा
सुनता झाडि़यों में उलझती हवा को
ट्रैफिक के अनुनाद को
सुनता अपनी सांस को -बढ़ती एक धड़कन को
पायदान पर जूते पौंछता
दरवाजे पे लगाता कान
कि लगा कोई कोई निकट आया भीतर दरवाजे के
बंद करता आँखें
देखता किसी हाथ को रुकते एक पल सिटकनी को छूते
निश्वास जैसे अनंत सिमटता वहीं पर,

भीतर भी
बाहर भी
मैं ही जैसे घर का दरवाजा
अजनबी बनता
पहचान बनाता





28.2.06 © मोहन राणा

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...