खिड़की पर अपना चेहरा सटा कर मैंने कुछ पहचानने की कोशिश की.... 30 हजार फीट से भी भला कोई पहचान हो सकती है, आकाश फिर भी उतना ही दूर लगता है जितना पैदल चलते कोलाहल से और बादल अलौकिक! हवाई जहाज शायद मध्यप्रदेश के ऊपर होगा, मैंने सोचा . चमकती हुई रोशनी में कुछ बादल नीले आकाश पर बिखरे और नीचे मध्य भारत का धुंधला भूगोल. पीछे वाली कुर्सियों पर लगभग हर कोई सो चुका था, आगे वाली कुर्सी पर दो बच्चे ऊधम में लगे थे . बच्चों के माँ- बाप आपस में अंग्रेजी में संवाद कर रहे थे बीच बीच में वे बच्चों को र्निदेश देते - फिर अपने साथ यात्रा कर रही बच्चों की आया से हिन्दी में कुछ कहते... मैं सोचने लगा मालिक- नौकर की भाषाएँ अलग -अलग हैं !?
भारत में हिन्दी किसकी भाषा है या नहीं है ?
बादल कुछ देर तक जैसे साथ उड़ते रहे. मैं बेंगलौर के बारे में सोचने लगा जहाँ मैं पहली बार जा रहा था.
4 comments:
hindi bloggro khi bhasha he janab....
हिन्दी हमारी भाषा है, जनाब.
हम भी नहीं चाह्ते कोई लघुग्रंथी से ग्रस्त हिन्दी बोल कर शर्मिन्दा हो.
हिन्दी हमारी मातृभाषा है, जनाब.मदरटंग नही
हम भी नहीं चाह्ते कोई लघुग्रंथी से ग्रस्त हिन्दी बोल कर शर्मिन्दा हो.
हिन्दी मेरी भाषा है। और यही हिन्दी हमारी कोलोनी जहाँ भारत के विभिन्न राज्यों से आये लोग काम करते व रहते हैं हम सब को जोड़ती है। चाहे विशुद्ध न सही पर हम सब इसी भाषा में बात करते हैं।
घुघूती बासूती
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