अभी सब एक जैसे लगते हैं नन्हे् अंकुर, पर कुछ दिन में सब के अपने अलग रंग हो जाएँगे , बनेंगे आकार और होगा अपना ही स्वाद... एक ही ट्रे में पालक भी है और इमली का भी अंकुर!
शुरू शुरू में सब एक साथ...
होता है ना ऐसा ही !
सुना किसी को कहते और छुपते
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...
2 comments:
मोहनजी अंकुर देख-पढ़कर सुखद आश्चर्य हुआ।
आप बिलकुल वही हैं। अपनी उसी संवेदनशीलता को बचाये हुए। बहुत मुश्किल है इस दौर में। मैं तो उस विधा का राइटर हूं, जिसे लगभग डंडेबाजी कहा जा सकता है-व्यंग्य़ आपको वैसा की वैसा देखना सुखद है। कवि जो नहीं बदलता दुनिया के साथ, दुनिया को बदलने की उम्मीद उससे ही की जा सकती है।
आलोक पुराणिक
mohan ji please mughe bhi apne blog me samil kar de to badi kirpa hoogi mera blog hai http://veerurawat.blogspot.com
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