Sunday, October 04, 2009

क्या सूरज हमारी स्मृतियों का लाइब्रेरियन है?


सुबह का सूरज
कहीं छोड़ कर आया दोपहर
कहीं खोल आया दरवाजा वह शाम के लिए
चमकता
आकाश ने ली जैसे एक लंबी सांस
दिन खुला
मेरी बंद आँखों के भीतर
मैं जनमा फिर कल आज कल के दर्पण में


© मोहन राणा

कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है / The poem Chooses Its Own Birth

Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays  "Liv...